कहने को सब कुछ है और है भी सही
फिर क्यो लगता है की कुछ है नही
जैसे कटरा कटरा में है मेरी ज़िंदगी
और कर रही हूँ मैं किसी की बंदगी
मॅन करता है कही डोर चली जाऊं
शायद तब दिल की गहराई में सुकून पायूं
पर दर्र लगता है चले जाने में
कही खो ना डू सब सुकून के पाने में
ख़ालीपन दिल का अटूट सा एक हिस्सा है
शायद ये बेकरारी का ही बस किस्सा है
बँधे बँधे से लगते हैं क्यो ये दिन
जैसे अपने बारे में सोचना हो एक ‘सीन’
खुला आसमान, खुले दिल, खुला दिमाग़
प्यार का जज़्बा और कुछ पाने की आग
कुछ प्यारे लोग और कुछ प्यारे पल
आज में हो जीना और उमीद में हो कल
सोच शायद बहुत छोटी सी रह गयी
ज़िंदगी बस गिरह गिरह में बात गयी
कैसे कहूँ की मुझसे प्यार करो
मेरी टुकड़े में बटी ज़िंदगी को एकसार करो
कह कर जो किया तो उसका मोल नही
जो दिल से छोटा भी किया उसका तोल नही
मेरी ग़लती है की मैं तुम में हूँ अपनी खुशी ढूँढ रही
शायद खुद से ज़्यादा प्यार करती तो ये होता ही नही
मेरा विश्वास करो मैने बहुत मेहनत की है
छोटी छोटी चीज़ों में खुद को खोने की कोशिश की है
मगर अकेले अब मुझसे ना हो पाएगा
दिल का ये अजीब सा दुखह जाने कैसे जाएगा
तुम पूछते हो की मैं तुम्हे अपना इलाज़ बताऊं
मैं पूछती हूँ की मैं तुम्हे क्या क्या समझाऊं
मेरे आँसू, मेरा गम, मेरा अकेलापन
सब मेरा है, तुम्हारा तो कुछ भी नही
तुम्हारी ज़िंदगी में सब है चाहे मैं हूँ या नही
हमेशा लगता है तुम्हे मेरी ज़रूरत ही नही
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